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लेखनी प्रतियोगिता -29-Jul-2023

उल्लाला छंद 
मात्रा भार 15/13
सृजन शब्द-सूखे आँसू

अब सूखे आँसू आँख के, यही कामना तात है।
 हम क्यों उदास खुद को करें, बड़ी सरल सी बात है।।
 अब मिलजुल कर हम सब रहें, रौनक आती द्वार है।
हाँ महका-महका सा लगे, फिर सारा संसार है।।

जब बालक खेलें आँगना, होती धूम किलोल रे।
 ये रंग खुशी के उड़ रहे,पाकर मधुरिम बोल रे।।
सब रौनक अपनों से मिले, खिलते मन में फूल से।
 ये बचपन की नादानियाँ, गए सभी क्यों भूल से।।

वे नहीं रहीं फिर रौनकें, उस बचपन के बाद में।
ये आँसू बन कर ढल गयीं, हैं अतीत की याद में।।
हाँ बीत समय जो भी गया, आता वापस है कहाँ।
सब क्षण भर की हैं रौनकें, जी लो जीभर के यहाँ।।

प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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3 Comments

खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति

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Reena yadav

30-Jul-2023 12:40 AM

👍👍

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Zakirhusain Abbas Chougule

29-Jul-2023 01:01 PM

Nice

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